यार, मेरा नाम अजय है। 29 का हूँ, और दिल्ली के एक मल्टीनेशनल कंपनी में मार्केटिंग का काम करता हूँ। ऑफिस 10वीं मंजिल पर है, ग्लास वाली बिल्डिंग, जहाँ से सड़कें दिखती हैं। रोज का रूटीन है – सुबह 9 बजे पहुँचता, कॉफी मशीन पर चाय लेता, डेस्क पर बैठकर ईमेल चेक करता। मीटिंग्स, रिपोर्ट्स, क्लाइंट कॉल्स – सब कुछ। लेकिन वहाँ एक लड़की है, नेहा, जो HR डिपार्टमेंट में काम करती है। नेहा 26 की है, नई-नई जॉइन की है, लेकिन देखने में ऐसी कि सारे लड़के घूम जाएं। गोरी चिट्टी, बाल शॉर्ट कट, और वो स्माइल जो मीटिंग रूम में भी मन भटका दे। नेहा की बॉडी… भाई, क्या बताऊँ। चूचियाँ सही साइज की, लेकिन सख्त लगती हैं, कमर पतली, और जींस में गांड इतनी टाइट कि कॉफी मशीन पर खड़ी हो तो नजरें खुद चिपक जाएं। +
शुरू में बस “हाय-हैलो” होता था, लंच टाइम पर चैट। लेकिन धीरे-धीरे वर्क ग्रुप से प्राइवेट चैट्स शुरू हो गईं। “अजय, आज की मीटिंग में तू कितना कूल था।” वो मैसेज करती। मैं जवाब देता, “तू भी कम नहीं, HR की क्वीन लग रही थी।” एक दिन शाम को लेट सिटिंग थी, प्रोजेक्ट डेडलाइन के चक्कर में। सब चले गए, ऑफिस लगभग खाली। मैं अपनी रिपोर्ट खत्म कर रहा था, नेहा आई। “अजय, तू अकेला? कॉफी लाऊँ?” वो बोली, और मेरे डेस्क पर झुककर खड़ी हो गई।
उसकी परफ्यूम की खुशबू आ रही थी। मैंने हामी भरी। नेहा कॉफी लेकर लौटी, मेरे पास वाली कुर्सी खींचकर बैठ गई। “अजय, तू शादीशुदा है ना? बीवी से बात होती है क्या?” उसकी आँखों में शरारत। मैं हँसा, “होती है यार, लेकिन ऑफिस में मन भटक जाता है कभी-कभी।” नेहा मुस्कुराई, “जैसे मेरा भटक रहा है।” उसका हाथ मेरी जांघ पर हल्का सा रुका। ऑफिस की लाइट्स हल्की थीं, बाहर सड़क की रोशनी आ रही। मेरा दिल धड़का। “नेहा… ये…” मैंने कहा। वो करीब सरकी, होंठ मेरे होंठों पर। किस हल्का था पहले, जैसे हिचकिचाहट। फिर गहरा हो गया – जीभ अंदर, साँसें तेज।
नेहा का हाथ मेरी शर्ट के नीचे सरक गया, मेरी उंगलियाँ उसके बालों में उलझ गईं। “अजय… ये ठीक रहेगा ना? कोई नहीं है, गार्ड भी नीचे है।” मैं बोला, “हाँ, लेकिन जल्दी। दरवाजा लॉक कर।” नेहा उठी, दरवाजा लॉक किया, फिर वापस आई। मैंने उसे डेस्क पर झुकाया। स्कर्ट ऊपर की। अंदर ब्लैक पैंटी, चूचियाँ ब्लाउज से उभरी। “नेहा, तेरी बॉडी… कितनी सॉफ्ट लग रही।” ब्लाउज के बटन खोले। ब्रा दिखी। ब्रा खोली। चूचियाँ बाहर – गोल-गोल, नरम लेकिन सख्त, निप्पल हल्के पिंक और थोड़े तने हुए। मैंने एक चूची मुँह में ली, धीरे से चूसना शुरू किया। जीभ से निप्पल के इर्द-गिर्द घुमाई, फिर हल्का सा दांत से काटा। नेहा सिसकी भर आई, “आह… अजय… चूस… मेरी चूचियाँ चूस… धीरे से… हाय… ऑफिस में ऐसा कभी सोचा नहीं… अच्छा लग रहा…” मैंने दूसरी चूची हाथ में ली, उंगलियों से सहलाया, निप्पल को हल्का सा मसला।
नेहा का बदन काँप रहा था, वो मेरे सिर को दबा रही। “उफ्फ… तेरी जीभ… कितनी नरम… और चूस… निप्पल पर घुमाओ… हाय… दर्द नहीं, बस सिहरन हो रही… मेरी चूचियाँ तेरे लिए ही हैं आज… दूध निकाल ले… ऑफिस की AC से ठंडक लग रही चूचियों पर… आह… कंप्यूटर की स्क्रीन पर हमारी परछाईं पड़ रही…”
मेरा हाथ नीचे सरक गया। स्कर्ट पूरी तरह ऊपर की। पैंटी गीली थी। “नेहा, तू तो तैयार हो गई लगती है।” मैंने पैंटी साइड की। चूत गोरी, साफ-सुथरी, क्लिट थोड़ी उभरी, रस हल्का चमक रहा। घुटनों पर बैठ गया, जीभ से चूत पर हल्की सी चाट दी – ऊपर से नीचे। क्लिट पर जीभ घुमाई, फिर मुंह में लेकर चूसा। नेहा की कमर उछल गई, “आह… अजय… चाट… मेरी चूत चाट… जीभ अंदर डाल… क्लिट चूस… हाय… अच्छा लग रहा… ऑफिस की कुर्सी पर बैठकर कभी सोचा नहीं…” मैंने जीभ चूत के अंदर घुसाई, धीरे-धीरे घुमाई, जैसे चोद रहा हूँ। एक उंगली अंदर डाली, फिर दो। क्लिट चूसते हुए उंगलियों से सहलाया, घुमाया।
नेहा पैर फैलाए रखने की कोशिश कर रही, हाथ डेस्क पकड़ रही। “हाय… अजय… फिंगर से… और अंदर… क्लिट पर जीभ दबा… उफ्फ… मैं झड़ रही हूँ… रस निकल रहा… पी लो… ऑफिस की फर्श पर टपक रहा रस… आह…” उसका रस गर्म आया, मीठा-सा। मैंने सब चाट लिया, जीभ से साफ किया। नेहा हाँफ रही थी, आँखें बंद, “अजय… तू तो जानता है… कितने साल बाद ऐसा… मेरी चूत अभी भी सुन्न है… AC की हवा से ठंडक लग रही… कंप्यूटर की लाइट चूत पर पड़ रही…”
“अब तू मेरा…” मैं बोला। नेहा घुटनों पर बैठ गई। मेरी शर्ट उतारी। पैंट खोली। लंड बाहर – मोटा, 7 इंच, सुपारा चमक रहा। “अजय, तेरा… कितना अच्छा।” नेहा ने हाथ में लिया, सहलाया। जीभ से सुपारे पर चाटा, फिर मुँह में डाला। धीरे से चूसने लगी। जीभ लंड की लंबाई पर फेर रही, गले तक ले रही। मैं सिसकारा, “नेहा… चूस… धीरे से चूस… तेरी जीभ… कमाल…” मैंने उसके बाल सहलाए। वो थूक गिराकर लंड को गीला कर रही, चूसते हुए बॉल्स को हाथ से छुआ। “तेरा लंड… स्वादिष्ट… और मोटा… मुंह में भर गया…” नेहा की आँखें ऊपर उठीं, मुस्कुराई। मैं कमर हल्की सी हिलाई, “तेरी जीभ… घुमाती जा… सुपारा चाट… आह… नेहा… गले तक ले… हाय… ऑफिस की कुर्सी पर तेरी घुटने दुख रहे होंगे…”
नेहा को डेस्क पर लिटाया। उसके पैर फैलाए, चूत खुली। लंड रगड़ा चूत पर। “नेहा, तैयार?” वो बोली, “हाँ अजय… आ… धीरे से।” सुपारा अंदर दबाया। चूत गर्म, टाइट। “आह… अजय… धीरे…” आधा अंदर, फिर पूरा। नेहा की कमर ऊपर उठी। धक्के शुरू – धीरे-धीरे तेज। थप-थप की आवाज, चूचियाँ उछल रही। मैं दबा रहा। “ले नेहा… ले… तेरी चूत में…” नेहा सिसकी, “जोर से… चोद… अजय… गहरा… आह… लंड पूरा अंदर… ऑफिस की डेस्क हिल रही…” मैंने स्पीड बढ़ाई, बाहर निकालकर घुसाया। नेहा के नाखून मेरी पीठ पर। “अजय… तेरे धक्के… चूत भर रहे… और तेज… हाय… कंप्यूटर की कीबोर्ड पर हाथ टिका रही… आह…”
पोजिशन बदली। नेहा घुटनों पर। पीछे से लंड घुसाया। “तेरी गांड… कितनी सुंदर।” कमर पकड़ी, धक्के। “आह… पीछे से… बाल पकड़…” मैंने बाल पकड़े। थप्पड़ हल्का। “गांड?” “हाँ… लेकिन बाद में…” धक्के तेज। नेहा झड़ी। काउगर्ल – नेहा ऊपर, उछली। “अब मैं…” चूचियाँ चूसी। रिवर्स – गांड दबाई। 69 – चूत चाटी, लंड चूसा। मिशनरी – “झड़ रहा…” “अंदर…” झड़ गया। नेहा झड़ी।
रात भर दो राउंड। सुबह नेहा बोली, “अजय, कल फिर।” ऑफिस में चुदाई – गुनाह, लेकिन जिंदगी का सबसे गर्म राज।